एमपी: एडीजे को अनिवार्य सेवानिवृत्ति के रूप में दिए दंड किया गया रद्द

एमपी: एडीजे को अनिवार्य सेवानिवृत्ति के रूप में दिए दंड किया गया रद्द

जबलपुर, डेस्क। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस रवि मलिमथ की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने एडीजे को अनिवार्य सेवानिवृत्ति के रूप में दिए दंड को रद्द कर दिया। न्यायालय ने सेवानिवृत्त एडीजे पर लगाए आरोपों को भी खारिज कर दिया।

वरिष्ठ अधिवक्ता ब्रायन डिसिल्वा व अधिवक्ता अभिषेक दिलराज ने बताया कि गुना में पदस्थ रहने के दौरान एडीजे केसी रजवानी पर पैसे लेकर जमानत देने का आरोप लगा। इसके अलावा फैसला और सुनवाई करने में देरी का भी आरोप था। आरोपों के आधार पर इनके खिलाफ विभागीय जांच की गई और वर्ष 2006 में उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई। इसी को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। मामले पर सुनवाई के बाद न्यायालय ने याचिकाकर्ता को 25 फीसदी वेतन संबंधी फायदे देने का आदेश किया। यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को 4 माह के भीतर सभी वेतन संबंधी लाभ का भुगतान करें।

मामले पर दिए फैसले में न्यायालय ने कहा कि एक न्यायाधीश न्यायालय का स्टेनोग्राफर नहीं होता जो हर कही गई बात को अपने आदेश पत्रिका में रिर्कार्ड करे, जो जरूरी तथ्य होते हैं सिर्फ वो ही एक जज के द्वारा आदेश पत्रिका में रिकॉर्ड किया जाता है।

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