जबलपुर (नवनीत दुबे)। जबलपुर लोकसभा सीट से वर्तमान सांसद आशीष दुबे इन दिनों अपनी हो रही उपेक्षा से व्यथित ओर रूष्ट है, संभवतः वे भलीभांति अवगत है के उनकी इस उपेक्षा का कारण क्या है?
ये कहना अतिश्योक्ति नही होगा के प्रदेश के लोक निर्माण विभाग मंत्री राकेश सिंह जो एक लंबी पारी सांसद पद पर आसीन रहकर खेल चुके है और प्रदेश से लेकर केंद्र तक सिंह साहब का रुतबा ओर वजन किसी परिचय का मोहताज नही है, तो वही दूसरी तरफ भाजपा के स्थानीय ओर ग्रामीण क्षेत्र में अपना रुतबा रखने वाले दुबे जी को सांसद प्रत्याशी बनाया जाना और भाजपाई मोदी लहर के चलते जीत का परचम फहरा कर आशीष एकाएक निचले क्रम के पायदान से उच्च क्रम पर विराजमान हो गए, किंतु उच्च क्रम पर आशिन होने के बावजूद इस पद की प्रतिष्ठा, सम्मान ओर पावर से अछूता महसूस कर रहे है?
सूत्रों की माने तो आशीष का जनाधार इतना विशेष नही है, साथ ही भाजपा के स्थानीय दिग्गजों व कार्यकर्ताओ के बीच इनका खासा तालमेल नही है या ऐसा भी कह सकते है कि दुबे जी का सांसद बनना कुछ वरिष्ठ भाजपाइयों को रास नही आ रहा है? विदित हो के बीते दिनों फ्लाई ओवर निर्माण कार्य का निरीक्षण करने सांसद जी नगर अध्यक्ष प्रभात साहू व अन्य भाजपा कार्यक्रताओं के साथ पहुचे थे जहाँ उनके पद की गरिमा उनकी आँखो के सामने ही धूमिल होती नजर आई, हालांकि दुबे जी साहू जी संबंधित विभाग के अधिकारियों की शिकायत लेकर संभागायुक्त के पास भी पहुचे जिस पर सियासती स्टाइल में ही महोदय ने माननीयों को जांच का आस्वाशन दिया, हास्यदपड ही कहेंगे के इतने सम्मनिय पद की उपेक्षा विभागीय अधिकारियों ने कैसे कर दी या किसके आदेश से अधिकारियो के हौंसले बुलंद हुए?
खेर ये तो महोदय जाने और माननीय, तो वहीं कटंगा फ्लाई ओवर के लोकार्पण में भी सांसद आशीष दुबे को एक बार फिर उपेक्षा के अपमान का घूंट पीना पड़ा क्योकि अधिकारी स्तर पर उनके आमंत्रण की सूचना नही दी गई हालांकि कार्ड में अध्यक्षता में नाम जरूर अंकित किया गया।
अंततः आखिर ऐसा क्या है जो सांसद आशीष दुबे अपना जनाधार नही बना पा रहे, न ही प्रदेश से केंद्र तक अपने नाम की विशेष पहचान स्थापित कर पा रहे? खैर इस बात पर मंथन ओर चिंतन दुबे जी को करना है, पर कलम की स्याही तो यही शब्द उकेर रही के बहुत कठिन है डगर सांसदी की, ओर जबलपुर के साथ ही प्रदेश और केंद्र में अपना विशेष स्तंभ स्थापित कर चुके सिंह साहब की सलाह ओर मार्गदर्शन दुबे जी की स्वर्णिम राजनीति को चमकाने में मील का पत्थर साबित होगी?