जबलपुर। मप्र उच्च न्यायालय ने बार-बार मोहलत के बावजूद जवाब न देने पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन व राज्य शासन की ओर से नियुक्त ओआईसी पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया। यह राशि स्वयं के वेतन से लीगल एड फंड में जमा करने के निर्देश दिए गए हैं, मामले में अगली सुनवाई 20 मई को होगी।
न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल व जस्टिस विशाल धगट की युगलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता सेवकराम पटेल की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह व विनायक प्रसाद शाह ने दलील दी कि याचिका के जरिये कोविड काल में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में हुई नियुक्तियों को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता का आरोप है कि इन नियुक्तियों में तत्कालीन प्रचलित आरक्षण नियमों के विरुद्ध नियुक्तियां की गई हैं। अपेक्षाकृत कम अंक पाने वाले अभ्यर्थियों को चयनित कर लिया गया। इसके लिए लेन-देन का खेल भी चला। याचिकाकर्ता मैरिट में आया, इसके बावजूद 50 हजार की अवैधानिक मांग पूरी न कर पाने के कारण उसे दरकिनार कर दिया गया। जबकि वरीयता क्रम में उससे काफी नीचे 129 वें नंबर वाले अभ्यर्थी नियुक्ति पा गए। मप्र उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक व न्यायमूर्ति विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने संपूर्ण नियुक्तियों को विचाराधीन याचिका के अंतिम आदेश के अधीन कर दिया था। इस अंतरिम आदेश के बाद कई बार सुनवाई हुई पर हर बार जवाब के लिए समय लिया जाता रहा। छह बार ऐसा ही किया गया व जवाब पेश नहीं किया गया।