जबलपुर- मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव कभी कुल बसते ही राजनीतिक दलों चाहे भाजपा हो या कांग्रेस दोनों के ही दावेदार जनमानस को रिझाने हर संभव प्रयास में पसीना बहा रहे हैं ऐसा हो भी क्यों ना बीते 4 साल तक सिर्फ पद का गुरूर अभिमान की कुर्सी में बैठकर विधायकी का खूब लुत्फ उठाया साथ ही परिजन भी रोग झाड़ने में अग्रणी रहे, किंतु अब जब पांचवें वर्ष में पुनः विधानसभा चुनाव का शंखनाद हुआ है तो दोनों ही दलों के विजई विधायक पुनः जन सेवक के रूप में जनता जनार्दन के समक्ष नतमस्तक की भांति आचार व्यवहार का प्रदर्शन कर रहे हैं, शायद इसी की वानगी है कि इस बार के चुनाव में धर्म ध्वजा के वाहक के रूप में खुद को प्रदर्शित करने का प्रयास किया जा रहा है, मुद्दे की बात पर आते हैं जैसे जैसे चुनावी मां नजदीक आ रहा है वैसे वैसे जनप्रतिनिधि प्रख्यात महाराजो, बाबाओं, और कथा वाचकों, के शरणागत होकर उनकी कथाओं चाहे राम कथा हो, श्रीमद्भागवत हो या शिवपुराण हो, इस तरह के पवित्र धार्मिक आयोजनों में करोड़ों रुपए का व्यय करके जनता के बीच उनके मस्तिष्क को पटल पर अपनी विशेष छवि स्थापित करके पुनः विजयश्री का स्वप्न संजो कर बैठे हैं? हालांकि जिस तरह से सियासी दलों के माननीय अपनी प्रतिष्ठा बचाने की चाह में ऐसे बड़े-बड़े प्रसिद्ध कथा वाचक के आयोजन की रूपरेखा बनाकर करोड़ों रुपए खर्च कर प्रदेश के आकर सहित केंद्र के आलाकमान तक अपना नाम पूर्ण वजन दारी के साथ पहुंचाना चाह रहे हैं, ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि यदि विधायकी कार्यकाल में जनहित और अपनी-अपनी विधानसभा में सक्रिय रहे होते तो प्रसिद्ध और बड़ी रकम की दक्षिणा लेने वाली सनातनी कथावाचकओं को बुलाने की इतनी आवश्यकता नहीं पड़ती? बीते दिनों जया किशोरी के धार्मिक आयोजन में संस्कारधानी धर्म धानी बनी थी जिसमें कांग्रेस के पूर्व कैबिनेट मंत्री तरुण भनोट की बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी थी, वैसे ही पनागर विधायक सुशील तिवारी द्वारा धीरेंद्र शास्त्री महाराज की भागवत कथा का आयोजन कराया जा रहा है जिसमें करोड़ों रुपए की राशि खर्च होने की चर्चा आमजन में है? अब देखना यह है कि धर्म ध्वजा के वाहक प्रदर्शित करने वाले माननीय जनप्रतिनिधि मतदाताओं को अपने पक्ष में रिझाने कितने सफल होते हैं, साथ ही इन धार्मिक आयोजनों के परिणाम स्वरूप कथावाचको से मिले विजयश्री के आशीर्वाद का जमीनीत है पर कितना प्रभाव होता है और साथ ही धार्मिक आयोजनों में खर्च की गई करोड़ों की राशि का ब्यौरा ईडी, इनकम टैक्स व अन्य संबंधित विभाग कैसे इनसे निकालते हैं? हालांकि यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि जिसकी सत्ता प्रशासन उसकी कठपुतली बनकर नाचता है? अंततः चुनावी साल में प्रसिद्ध कथावाचक दिव्य दरबार वाले आचार्य, बाबा, महाराज इन माननीय आयोजकों के कितने काम आते हैं?