जबलपुर। संस्कारधानी की महामाई के नाम से प्रसिद्ध गढ़ाफाटक, जबलपुर कालीधाम कीमहाकाली, जिनकी महिमा है निराली। 121 वर्ष का इतिहास समेटे महामाई बड़ी महाकाली न केवल जबलपुर बल्कि आसपास के जिलों, कई प्रदेशों और विदेशों मेंभी आस्था का प्रतीक हैं। स्थिति ये है कि यह पूरा क्षेत्र बड़ी महाकाली के नाम से प्रसिद्ध हो चुका है। इस क्षेत्र की यह भी विशेषता है कि इस क्षेत्र के चारों और महाकाली की प्रतिमाएं सर्वाधिक संख्या में स्थापितकी जाती हैं। महामाई की कृपा से जो लोग वर्तमान में विदेशों में रहकर अपनी आजीविका चला रहे हैं, वे भी नौ दिनों में किसी न किसी तरीके से ऑनलाइन दर्शन करते हैं बल्कि अपनी भेंट भी भेजते हैं। महाकाली की प्रतिमा स्थापना के विषय में ऐसी मान्यता हैं कि 12 वर्ष तक एक ही स्थान पर प्रतिमा विधि विधान से स्थापित की जाती है तो निश्चित तौर पर वह स्थान सिद्ध स्थल हो जाता है और यह बात गढ़ाफाटक की महाकाली के सिद्ध स्थल से प्रमाणित भी होती है। इस दरबार से हजारों लाखों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है।
नौकरियों, शादियों और बच्चों के जन्म की मुराद लेकर आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी हो जाती है तो उनकी आस्था द्विगुणित हो जाती है। कोई मनोकामना पूरी होने पर नौ दिन माता जी की अखण्ड ज्योतजलवाता है तो कोई प्रतिमा की न्यौछावर के लिए अपनी बुकिंग करा लेता है। वर्ष 2030 तक के लिए प्रतिमा की न्यौछावर अभी से बुक हो चुकी है और इससाल के नौ दिनों यह संख्या और भी बढ़ सकती है जैसा की हर साल होता है।प्रतिमा का इतिहास बहुत पुराना है। वर्ष 1899 में स्व. रामनाथ यादव, स्व. हुब्बीलाल राठौर, स्व. बाबूलाल गुप्ता, स्व. सुदामा गुरु, स्व. ओंकार प्रसाद साहू, स्व. चंद्रभान यादव, स्व. मुन्नीलाल मेवादी, श्यामलाल दारोगा, स्व. रामसेवक यादव और रामनारायण केसरी ने इसकी शुरुआत की थी।
सबसे पहली प्रतिमा चरहाई में रखी गई, तथा इसके बाद एक साल प्रतिमा स्व. रामनाथ यादव के निवास स्थान पर रखी गई। इसके बाद उनके घर के ही सामने माताजी का स्थान निर्धारित हो गया। श्री वृहत महाकाली उत्सव समिति के बैनर तले नवरात्र का उत्सव पूरी धूमधाम के साथ मनाया जाने लगा। उस वक्त पण्डा की भूमिका में स्व.लक्ष्मण ठाकुर ने महत्वपूर्ण दायित्व को पूरी आस्था और निष्ठा के साथ संपादित किया। उनके सहायक के रूप में स्व.वृंदावन सेन और स्व.मुन्ना नायक सदैव सेवा के लिए तत्पर रहते थे। समय बदलता गया और नए नए लोग मोर्चा संभालते गए। बाद में स्व. गोपाल दास राठौरने अध्यक्ष पद संभाला, उनके साथ महामंत्री के रूप में स्व.प्रहलाद मिश्रा, स्व.विजय अग्रवाल ने लंबे समय तक दायित्व निर्वहन किया। वर्तमान में उदय सिंह राठौर अध्यक्ष और नरेश सिंह ठाकुर महामंत्री व उपाध्यक्ष शशिकांत गुप्ता, रामसिंह ठाकुर बबलू और कोषाध्यक्ष मंजेश राठौर व्यवस्था को संभाल रहे हैं। महामाई के पूजन अर्चन का दायित्व भी पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है पहले खोखे महाराज और भगवानदास विधि विधान से पूजन कराते रहे। उनके बाद उनके पुत्र बबलू महाराज ने यह दायित्व संभाला। वर्तमान में पण्डा की भूमिका में भैरव सिंह ठाकुर (विजय) संभाल रहे हैं और उनके सहयोगी के रूप में विजय सेन और महेश केसरवानी कार्य कर रहे हैं।
इनके अलावा कार्यक्रम में पूरे मनोयोग से सहयोगी की भूमिका में आचार्य देवेंद्र पोद्दार, अमर यादव, समर यादव, कमलेश गुप्ता, घनश्याम त्रिवेदी, पप्पू नामदेव, पप्पू यादव, विष्णू सिंह ठाकुर, सत्येंद्र शर्मा, बबलू नामदेव, रम्मू नामदेव, निखिल ठाकुर, राजा नामदेव, शालू ठाकुर, गोलू जैन, नीलेश अग्रवाल, अखिलेश नामदेव, रोहित राठौर, योगेश नामदेव, शैंकी साहू हैप्पी शुक्ला, योगेश राठौर, कपिल गुप्ता, शुभम पटेल, शिवा नामदेव, मोहित राठौड़, प्रशांत शर्मा, अंकित मेवारी, विक्की मेवारी निभा रहे हैं।
इस दरबार की खास बात यह है कि पूरे नौ दिन कहने को समिति की व्यवस्था रहती है। लेकिन पूरा शहर यहाँ पूरा शहर यहाँ आस्था और श्रद्धा का सैलाब यहाँ उमड़ पड़ता है। भरे कोरोना काल में जब पूरे शहर में प्रतिमाओं की स्थापना नहीं करने का निर्णय लिया गया था तब यह समिति भी प्रतिमा स्थापित करने में आगे पीछे हो रही थी लेकिन माई को स्थापित होना था इसलिए पूरे समीकरण बनते गए महामंत्री नरेश सिंह ठाकुर ने प्रतिमा स्थापना के लिए हामी भर दी जिसके फलस्वरूप केवल माई 16 फुट की अपनी ऊंचाई के साथ स्थापित हुईं बल्कि दरबार में भीड़ भी लगी या यूं कहें कि कोरोना काल के दो साल में भी पूरे जिले की जनता यहाँ दर्शन करने आई। प्रशासन भी महामाई के चमत्कार के आगे नतमस्तक हो गया। कोरोनाकाल में जुलूस निकालने की अनुमति नहीं थी, 20 लोगों के साथ प्रतिमा विसर्जन की अनुमति दी जा रही थी तब प्रतिमा की लंबाई और वजन के मद्देनजर प्रतिमा को उठाने और विसर्जन करने के लिए सिर्फ 50 लोगों की अनुमति दी थी और उनकी पहचान के लिए दी थी। इसके बावजूद जब माई विसर्जन को चली तो ऐसा लगा कि पूरा शहर इस एक प्रतिमा के साथ दशहरा चल समारोह की भव्यता को पूरा कर रहा है। भीड़ को तितर बितर करने के लिए पुलिस को कई बार लाठी चार्ज भी करना पड़ा। भारी पुलिस बल के बीच प्रतिमा विसर्जन स्थल तक पहुंच सकी। यहाँ महामाई की एक विशेषता और भी है कि उनके विसर्जन के क्षण तक बराबर शुरुआती उत्साह के साथ ही भीड़ बनी रहती है। उनके विसर्जन का समय भी निश्चित हैं वो जुलूस में निकलें या दो साल कोरोना में निकली हों कोई न कोई कारण ऐसा बन जाता है कि उनका विसर्जन भोर के 6 बजे ही हो पाता है। प्रतिमा विसर्जन के लिए निकलती है तब समिति के हाथ से व्यवस्था अपने आप छूट जाती है और माई का जलवा और जलसा शहर भर के श्रद्धालुओं के हिसाब से चलता है।
डग-डग पर पूजन अर्चन का क्रम चलता है। दशहरा चल समारोह में माता जी को बीच के क्रम में रखा जाता है ताकि शुरु से लेकर आखिरी तक माई के दर्शनों की लालसा में दशहरा चल समारोह की भीड़ एक सी बनी रहे और कोई अव्यवस्था न हो। बड़ी महाकाली की शहर में अपनी एक अलग पहचान है। जिनके मनोरथ सिद्ध हुए हैं वे अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर यह भी बताते हैं कि वाकई यहाँ आने और सच्चे मन से प्रार्थना करने पर माँ सभी कामनोरथ पूर्ण करती हैं। किसी के कोर्ट कचहरी के काम बनते हैं तो किसी को नवजीवन मिलता है, तो किसी की वर्षो से सूनी गोद भर जाती है। जिनके विवाह में विलंब होता है उनके घर भी जल्दी बस जाते हैं। ऐसे बहुतायत लोग न केवल नवरात्रि में बल्कि 12 महीने अमावस पूर्णिमा और कुछ तो प्रतिदिन यहाँ अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। इस प्रतिमा को बनाने के लिए मूर्ति कारों का भी अपना एक महत्वपूर्ण योगदान रहा वर्षों तक बीपी पटेल ने प्रतिमा का निर्माण किया उसके बाद सबसे लंबे समय 32 साल मूर्तिकार प्रकाश साहू ने मोदी का निर्माण किया बीच में 2 साल मूर्ति कला की हस्ती कुंदन ने बहुत सुंदर मूर्तियां बनाई इस वर्ष बीपी पटेल के सुपुत्र मनोज पटेल द्वारा प्रतिमा का निर्माण किया गया और इस तरह 122 में वर्ष में प्रवेश करते हुए मां भवानी भक्तों को दर्शन देने के लिए अपने स्थान पर विराजमान होने जा रही हैं शहर के सभी नागरिक और श्रद्धालुओं को नवरात्र पर्व की श्री बड़ी महाकाली महोत्सव समिति और जबलपुर एक्सप्रेस परिवार की ओर से बहुत-बहुत शुभकामनाएं मातारानी सबकी मनोकामनाएं पूरी करें। ”जय माता दी”
आलेख सुनील साहू