(रामसहाय मर्दन) डिंडौरी | सामान्य वन मंडल अंतर्गत वन परिक्षेत्र डिंडोरी के वन क्षेत्र गोरखपुर के कक्ष क्रमांक 192 जोगीधार में काले मुंह के जंगली बंदर (लंगूर) का शिकार करके भक्षण करने का मामला सामने आया है। संरक्षित वन्य जीव के शिकार के इस मामले में वन अमले ने दो आरोपियों को गिरफ्तार किया है। जिनके कब्जे से 10 लंगूर की खोपड़ी, मांस के टुकड़े, कुल्हाड़ी, तबेला, माचिस, गंजी और शिकार के प्रयुक्त तार के फंदे, रस्सी, कुल्हाड़ी, वसूला, चाकू जप्त किया गया है।आरोपियों के विरुद्ध वन संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा के तहत प्रकरण कायम कर विवेचना की जा रही है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक पिछले दिनों वन अधिकारियों को गोरखपुर के जंगलों में वन्यजीवों के शिकार की गुप्त सूचना प्राप्त हुई थी। जिनके मद्देनजर वन अमले ने सूचना तंत्र को सक्रिय किया और रविवार को जोगीधार के जंगल में दबिश दी। जहां वनकर्मियों ने घेराबंदी करके भागवत पिता फलसाय 49 साल और बलदेव पिता गरभु सिंह 41 साल निवासी ग्राम दूबा थाना शाहपुरा को जंगल के अंदर 10 मृत लंगूर के मांस में टुकडे को पकाते हुए रंगेहांथ हिरासत में लेने में सफलता पाई। पूछताछ के दौरान आरोपियों ने बताया कि वह जंगलों में लगातार लंगूर का शिकार करते थे और मांस के टुकड़ों को भूनकर खाते थे। उक्त कार्रवाई में रेंजर आशुतोष चंद्रवंशी, फारेस्ट गार्ड नीतेश धुर्वे, जसवंत घोषी, राकेश परते, विमला मरावी,सुनीता मरावी,ज्योति सरोज धुर्वे की अहम भूमिका रही।
◆लंगूर का शिकार और भक्षण चिंता का विषय:-
सामान्य तौर पर लंगूर और बंदरों के शिकार और इनके मांस का सेवन इंसानों के द्वारा किये जाने की जानकारी देखने सुनने में नहीं आ रही थी। प्राय धार्मिक मान्यताओं के चलते बंदरो का शिकार भी नहीं किया जाता है।उसके साथ ही वानर को मनुष्य का पूर्वज माना जाता है। लेकिन अब यह चिंता का विषय है कि लंगूरों को खाया भी जा रहा है।जिससे प्रतीत होता है कि इंसान नरभक्षी बन रहा है।जो मानसिक विकृति का प्रतीक है।गौरतलब है कि जोगीधार के जंगलों के पूर्व भरवई वन कक्ष में भी जंगली बंदर के शिकार और सेवन का मामला सामने आ चुका है।इस वारदात से वन सुरक्षा ही नही मानवीय गुण भी प्रभावित हो रहा है।