कांग्रेस-भाजपा के आलाकमान सहित मध्यप्रदेश के बड़े सियासती दिग्गज नेता संभवत अक्टूबर-नवंबर 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए नीति-रणनीति बनाकर चुनावी भगवान मतदाता के सामने स्वयं को उनका हितेषी और प्रदेश हित के लिए समर्पित दर्शाने जमीनी स्तर पर सक्रिय हो गए हैं, सीधी सी बात है कि जब आकाश सकरी हो तो अनुयाई अतिसक्रिय होंगे, ही किंतु सारे तारतम्य में एक विडंबना भी दृष्टिगत हो रही है भाजपा-कांग्रेस के प्रदेश स्तर के कद्दावर चाहे वह अध्यक्ष हो, मंत्री हो, सांसद हो, स्वयं मुख्यमंत्री या पूर्व मुख्यमंत्री, इन सभी के चरण सेवक बड़े लालायित हैं और पूर्णता आश्वस्त भी हैं कि भाई साहब ने कंधे पर हाथ रखकर बोला है तैयारी करो विधानसभा की? और हास्यास्पद ही है कि यह चरण सेवक मनोवृति पाल बैठे कि इन्हें प्रत्याशी बनाया जाएगा? आखिर हर कार्यकर्ता की यही चाह होती है कि उसकी राजनीतिक पार्टी एक बार उसे भी अवसर दें लेकिन सियासत के अखाड़े में खलीफा ही तय करता है कि विरोधी से कौन लड़ेगा ,भले वो एक गांव भी ना चल पाए और प्रतिद्वंदी से मुंह के बल पटकनी खा जाए परसिया सती खलीफा का चहेता जो है हारे या जीते पर स्नेह नाम की भी कोई चीज है, बस यही मुख्य आधार होता है क्या सती समीकरण पर पानी फेरने का हर बार एक ही को प्रत्याशी बनाया जाना क्योंकि वह जीत रहा है यही नुकसानदेह साबित होगा इस बार विधानसभा चुनाव में दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा कांग्रेस के लिए अगर दिग्गजों ने टिकट वितरण में भाई भतीजावाद व चरण सेवक को महत्व दिया तो निश्चित है दोनों ही राजनीतिक दलों के कर्मठ निष्ठावान पार्टी समर्पित कार्यकर्ता बगावत कर भितरघात करें और अपनी ही पार्टी को हाशिए पर ला दें? और घुप अंधेरे में दोगली सियासत के हल्के धुंध भरी रोशनी में विरोधी दल के प्रत्याशी से हाथ मिला कर अपनी पार्टी के प्रत्याशी को जमीनी पटखनी दे दे, खेत सियासत है जो भाई साहब लोगों के चरण रज से निकले पानी को चरणामृत समझकर पिएगा प्रत्याशी वहीं बनेगा और भी तरह का शिकार होगा…?