(नवनीत दुबे)। मध्यप्रदेश में एक बात पुनः भाजपा की सरकार स्थापित हुआ और सरकार भी ऐसी जिसमे भाजपाई विधायको की संख्या 200 के आंकड़े से थोड़ा दूर बस रह गई, तो वहीं पुराने ढर्रे पर चल रही कॉंग्रेस को मुह की खानी पड़ी, ओर बहुत कम प्रत्याशियों की जीत से संतुष्टि करनी पड़ी, खैर मुद्दे की बात पर आते है कि जिस तरह से इस विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सांसदों और मंत्रियों को विधायकी के चुनावी रण में उतारा था उससे एक बात के कयास लगाये जा रहे थे कि वक्त है बदलाव का की सोच अब भाजपाई राजनीति में बहुत से बदलाव की आहट है? ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि केंद्र की राजनीति से प्रदेश भाजपा की राजनीति में दिग्गजों को उतारना स्पष्ट करता है कि लोकसभा चुनाव में नए चेहरों को मौका दिया जायेगा, जो लाज़मी भी है पर समूचे चुनावी तारतम्य को जोड़ कर देखा जाये तो इस बार युवा चेहरों को ज्यादातर मौका दिया गया है और खुद को मठाधीश समझ बैठे विधायकों को एक किनारे कर भाजपा की वर्तमान रीति ओर नीति का शंखनाद कर दिया है, चर्चा तो ये भी है कि नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री मोहन यादव की कैबिनेट में कुछ नए युवा चेहरों को कैबिनेट में स्थान मिल सकता है, हालांकि इस बात का अंदेशा उम्र दराज दिग्गज भाजपाइयों को भी है जो वर्तमान में विजयी हुए है, अब इसका निर्धारण तो आलाकमान ही करेंगे कि नए मुखिया के साथ कदमताल मिलाकर कौन कौन से विजेताओं को अवसर मिलेगा? हालांकि वर्तमान राजनीति ऐसे बदलाव की आवश्यकता बहुत थी कि मंत्री पद पर अपनी जड़ें फैला चुके कद्दावरों की वजनदारी के चलते युवाओं को आगे आने का मौका नहीं मिल रहा था, तो वहीं मोदी-शाह की रणनीति के चलते सारे सियासती कयास धरे के धरे रह जाते है, ओर कुछ ऐसा ही आगामी लोकसभा चुनाव में होने का अनुमान है कि जिसमें नए चेहरों को सामने लाया जायेगा और युवा सोच और जोश की बानगी देखने मिल सकती है, ये कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगा कि तीन राज्यों में भाजपा को मिली ऐतिहासिक जीत लोकसभा चुनाव में मोदी फेक्टर के चलते कम से कम 390 सीट पर भाजपा की विजय पताका लहरायेगी।