जबलपुर नवनीत दुबे- योजनाओं की बाहर है क्योंकि मध्यप्रदेश में ये चुनावी साल है, खलीफाओं के अजब-गजब दाव होते हैं, सही अवसर देखते ही प्रतिद्वंदी को पटखनी देने का अवसर सियासतदार बिल्कुल भी नहीं चूकते भाई, सत्ता सुख की खातिर जो भी दांव चलना पड़े कम है मतदाताओं को रिझाने मुफ्त रेवड़ी स्वरूप योजनाओं का ऐसा प्रचार—प्रसार किया जाता है मनो जनमानस के सच्चे हितैषी और हमदर्द यही हो? पर जब वास्तविकता की धरा पर जो हकीकत दृष्टिगत होती है वह मन मस्तिष्क को विचलित कर सत्ताधीशों की करनी और कथनी पर मंथन-चिंतन करने विवस कर देती है, जहां एक और प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान मुफ्त योजनाओं की सौगात देकर महिला शक्ति के बीच अपनी विशेष छवि स्थापित कर रहे हैं तो वहीं पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेस के कमलनाथ भी महिला शक्ति को पूर्ण आश्वस्त कर रहे हैं कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनते ही शिवराज की योजनाओं से मिलने वाली राशि बढ़ाकर देंगे साथ ही महंगाई पर नियंत्रण करेंगे हास्यस्पद कहे या विडंबना सियासत के यह महारथी योजनाओं के नाम पर मुफ्त रेवड़ी तो बांट रहे हैं लेकिन प्रदेश की वित्तीय हालत को जान कर भी अंजान बन रहे हैं और कर्ज में डूबे प्रदेश को और कर्ज के बोझ तले दबा रहे हैं? सियासतदार है भैया “सत्ता सुख की भूख के वशीभूत कुछ भी कर सकते हैं” दुर्भाग्य ही कहेंगे जहां एक तरफ शासन-प्रशासन खुशाल मध्यप्रदेश का ढ़ोल पीटते नहीं थक रहा ऐसे में इनके ढोल की पोल जनमानस को खास तौर पर बुद्धिजीवी वर्ग को भली-भांति दिखाई दे रही है, मुद्दे की बात यह है कि जहां एक तरफ भाजपा और कांग्रेस सतत सिंहासन की चाह में योजनाओं की बंदरबांट में लगी है तो वही प्रदेश का पढ़ा लिखा हुआ बेरोजगारी का दंश झेल रहा है और अपने भविष्य को गुमनामी के अंधेरे में विलुप्त होते देख रहा है, क्योंकि बड़ी-बड़ी इन्वेस्टर मीट के नाम पर अतिथियों की आवभगत में लाखों-करोड़ों का अनर्गल व्यय कर दिया जाता है किंतु यथास्थिति जो दर्शा रही है वह हासिल आई शून्य 0 है हां वह बात अलग है बड़े-बड़े उद्योगपतियों की जिस तरह सेवा की जाती है उन पर खर्च हुई राशि शासकीय कागजों में 10 दूनी 2000 लिखी जाती है? संभवत ऐसा हो भी क्यों ना सबका साथ सबका विकास यह नारा जो मिल गया है, और रही बेचारे उच्च शिक्षित युवा वर्ग की उम्मीद पर आसमान टिका है।