(जबलपुर) शर्म करो नर्मदा के नाम पर सियासत करने वालों..?

(जबलपुर) शर्म करो नर्मदा के नाम पर सियासत करने वालों..?

जबलपुर, नवनीत दुबे। सर्वविदित है कि बीते कुछ समय से सियासतदरों के श्री मुख से धार्मिक जयकारों के उद्घोष ओं की हुंकार भरते हुए राजनीतिक मंचों से भाषण की शुरुआत की जा रही है, ऐसा हो भी क्यों ना जनमानस को रिझाने धार्मिकता का चोला पहनना यह भी एक सियासती रणनीति ही है, लेकिन दुर्भाग्य कहें या विडंबना की सियासतदार चाहे भाजपाई हो या कांग्रेसी दोनों ही पतित पावनी जीवन जलधारा श्री नर्मदा को आधार बनाकर सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होना चाह रहे हैं और नर्मदे हर, नर्मदा माई की जय के पावन जयकारे को राजनीतिक शस्त्र के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं? मकरवाहिनी की अमृत जलधारा व सौंदर्य स्वरूप के प्रति सिर्फ राजनीतिक मंचों से ही आस्था और भक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं, जबकि वास्तविकता की धरा पर पतित पावनी की हो रही दुर्दशा और कुरूपता को जान कर भी अंजान ही बने हुए हैं, मुद्दे की बात पर आते हैं कि नर्मदा तटों से लेकर जीवनदायिनी की जलधारा विषाक्त हो रही है, सियासती संरक्षण में नर्मदा का सीना छलनी कर धड़ल्ले से अवैध रेत उत्खनन चल रहा है, साथ ही कारखानों, फैक्ट्रियों, होटलों, आश्रमों, नाले-नालियों की गंदगी, और जहर रूपी केमिकलों का गुपचुप तरीके से नर्मदा की जलधारा में मिश्रण किया जा रहा है। पर मजाल है कि जिम्मेदार विभाग या सियासती नर्मदा भक्त इस दिशा में कोई ठोस कार्रवाई करें? विदित हो कि नर्मदा के नाम पर आस्था भक्ति का छलावा राजनीतिक नर्मदा भक्तों को महंगा पड़ चुका है, फिर चाहे भाजपा की शिवराज सरकार हो या कांग्रेस की कमलनाथ सरकार दोनों ही सत्ता सुख से वंचित हुए हैं, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि हरियाली की चुनरी माई नर्मदा को पहनाने का दिखावा नर्मदा सेवा यात्रा का पौधारोपण के नाम पर किया जा चुका है, तो वहीं गौ कुंभ के नाम पर भी नर्मदा के प्रति आस्था भक्ति का परिचय दिया गया था, जिसमें करोड़ों रुपए की राशि भी खर्च की गई थी लेकिन जो यथास्थिति दृष्टिगत है वह किसी से छिपी नहीं है? हालांकि चर्चा तो अभी तक यही हो रही है की पौधारोपण और गौ कुंभ के नाम पर 11 दुनी 11 लाख का खेल हुआ है, अब इसमें सच्चाई कितनी है? यह चर्चा करने वाला जनमानस जाने और सियासती नर्मदा भक्त? अंततः यह कहना अनुचित नहीं होगा कि नर्मदे हर का जयकारा लगाने से नर्मदा की दुर्दशा और कुरूपता नहीं बदलेगी इसके लिए आत्मिक भाव, पूर्ण आस्था के साथ ही जमीनी स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है, जिसमें निजी स्वार्थ कमीशन खोरी और सियासती कुर्सी का मोह हृदय के किसी कोने में विद्यमान न हो।

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