पेसा एक्ट एवं वन अधिकार अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु की बैठक संपन्न….
डिंडौरी,रामसहाय मर्दन| चिकित्सक एवं विकृति विज्ञान विशेषज्ञ डाॅ. रूप नारायण मांडवे ने कहा है कि पेसा एक्ट एक सामाजिक क्रांति है, जनजातीय भाई-बहनों के हित में पेसा नियम लागू किए गए हैं। यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन है। सामाजिक समरसता के साथ पेसा एक्ट के प्रावधान को जमीन पर उतारे जा रहे हैं। रविवार को कलेक्ट्रेट सभाकक्ष में चिकित्सक एवं विकृति विज्ञान विशेषज्ञ डाॅ. रूप नारायण मांडवे और भारतीय विज्ञान संस्थान एमएस, पर्यावरण अंतर्विषयक शोधार्थी शरद चंद्र लेले की अध्यक्षता में पेसा नियमों एवं वन अधिकार अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु राज्य स्तरीय टास्क फोर्स टीम एवं जिला व जनपद पंचायतों के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों की बैठक संपन्न हुई। इस अवसर पर जिला पंचायत अध्यक्षरूद्रेश परस्ते, कलेक्टर विकास मिश्रा, डीएफओ साहिल गर्ग, जिला पंचायत की मुख्यकार्यपालन अधिकारी श्रीमती नंदा भलावे कुशरे, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक जगन्नाथ मरकाम सभी जिला पंचायत सदस्य, जनपद पंचायतों के अध्यक्ष और सदस्य व अधिकारी मौजूद थे। डाॅ. मांडवे ने कहा कि 15 नवम्बर से प्रदेश में पेसा के नियम लागू कर दिए गए हैं। जिससे जनजातीय वर्ग को जल, जंगल, जमीन से जुड़े अधिकारों के साथ ही महिला सशक्तिकरण के अधिकार दिलवाने के लिए सभी सक्रिय होंगे उन्होंने कहा कि जहाँ गौण खनिज से जुड़े अधिकार जनजातीय वर्ग को दिए जा रहे हैं, वहीं लघु वनोपज से जुड़े कार्य से उन्हें बेहतर ढंग से लाभांवित करने की पहल हुई है। खनिज पट्टों पर जनजातीय लोग का पहला हक बनता है। पेसा एक्ट की मूल भावना जनजातीय वर्ग का कल्याण है। पुलिस थाना स्तर पर छोटे मोटे विवादों को बातचीत से सुलझाया जा सकता है। यदि कई अपराध थाने में पंजीबद्ध होता है तो उसकी सूचना ग्राम सभा को देना होगी। डाॅ. मांडवे ने कहा कि मुख्यमंत्री चौहान के द्वारा मध्यप्रदेश की धरती पर जनजातीय समुदाय के लिये ऐतिहासिक निर्णय लिया जाकर पेसा एक्ट लागू किया गया है। इसमें प्रत्येक जनजातीय ग्राम की अलग से ग्राम सभा होगी और उसे अधिकार सम्पन्न बनाया जाएगा। इसके लिये जरूरी है कि ग्राम के लोग पेसा एक्ट की भावना को समझेंगे। पेसा एक्ट लागू होने से सरकार भोपाल से नहीं गांव की चौपाल से चलेगी। उन्होंने बताया कि पेसा एक्ट किसी के खिलाफ नहीं है, इससे किसी का कई नुकसान नहीं है, सभी का फायदा ही फायदा है। अब हर साल ग्राम की ग्राम सभा में पटवारी और फारेस्ट गार्ड नक्शा, खसरे की नकल, बी-1 की कापी लेकर आयेंगे और ग्रामवासियों को पढ़ कर सुनायेंगे। गड़बड़ी पाई गई तो ग्राम सभा सुधार करेगी। गड़बड़ी करने वालों खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी। किसी सरकारी कार्य, योजना के लिये जमीन देना है, यह ग्राम सभा तय करेगी। ग्राम की भूमि का बिना ग्राम सभा की अनुमति के भू-अर्जन नहीं किया जा सकेगा। किसी जनजातीय भाई की जमीन पर कई व्यक्ति बहला-फुसला कर, शादी के माध्यम से अथवा धर्मांतरण द्वारा कब्जा नहीं कर पायेगा। गाँव की गिट्टी, पत्थर, रेती आदि की खदान की नीलामी होनी है या नहीं यह ग्राम सभा तय करेगी। खदान पहले जनजातीय सोसायटी को फिर ग्राम की बहन और फिर पुरूष के प्राथमिकता के आधार पर दी जायेगी। शरद चंद्र लेले ने आयेाजित बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि वन अधिकार अधिनियम और पेसा एक्ट एक दूसरे के पूरक हैं। उन्होंने वनाधिकार अधिनियम के बारे में बताते हुए वनभूमि पर खेती/बस्ती चालू रखने के व्यक्तिगत अधिकार के संबंध में जानकारी दी। वनों से निस्तार, चराई, लघु वनोपज दोहन, वनों के प्रबंधन व सामुदायिक अधिकार सीआर-2 के नियमों को बताया है। इसके बाद वनग्रामों में आईएफआर की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए बताया कि प्रशासन द्वारा 2009 से हर 3 से 5 साल के अंतराल में आईएफआर पत्र वितरित किये गए हैं। आईएफआर को वनग्राम के दायरे तक ही सीमित रखा गया है। जिसमें सुधार की आवश्यकता है। शरद चंद्र ने पेसा मोबलाईजर्स को उपयुक्त प्रशिक्षण प्रदान कर लोगों को जागरूक करने और ग्रामसभा को सशक्त करने की आवश्यकता है। पेसा के क्रियान्वयन के लिए सभी विभागों को मिलकर कार्य करना होगा। पेसा के अनुसार ग्रामसभा का संचालन करते हुए सीएफआर की प्रक्रिया को गति प्रदान करें। कम से कम दो गांवों के अनुभवों के आधार पर बैगाचक के अन्य वनग्रामों के लिए कार्य योजना तैयार की जाए। आईएफआर नपाई कार्य हेतु ग्रामसभा को आवश्यक राशि उपलब्ध कराना होगा। सीएम इंर्टन और पेसा मोबलाईजर्स का दावों की प्रक्रिया में सहयोग जरूरी है। साथ ही पंचायत सचिव को शुरू की और अंतिम ग्रामसभा आयोजित करना और पंजीकरण करना, दस्तावेजीकरण में मदद कराना होगा। शरद चंद ने कहा कि जिले के सभी 86 वनग्रामों को सीएफआर मान्यता मिलनी चाहिए, जिससे गांवों में प्रबंधन का काम शुरू हो जाए।