जबलपुर, (साईडलुक डेस्क)। मप्र उच्च न्यायालय ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए सवाल किया है, कि जब नियुक्ति पत्र जारी नहीं किया तो फिर मूल दस्तावेज क्यों नहीं लौटाए। इस सिलसिले में राज्य शासन के स्वास्थ्य विभाग को नोटिस जारी किया गया है। जवाब के लिए चार सप्ताह का समय दिया गया है।
मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमथ व न्यायमूर्ति दिनेश कुमार पालीवाल की युगलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी डॉ. मौली कीर्ति पटेल की ओर से अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने दलील दी कि नियमानुसार याचिकाकर्ता को तीन माह के भीतर नियुक्ति-पत्र दिया जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। यही नहीं मूल दस्तावेज भी नहीं लौटाए गए।
दरअसल, याचिकाकर्ता ने 2020 में मेडिकल पीजी डिग्री एमएस हासिल की। पीजी नियम के अनुसार प्रत्येक डॉक्टर को कम से कम एक वर्ष ग्रामीण क्षेत्र में अनिवार्य रूप से सेवा देने का नियम है। इसके लिए 10 लाख रुपये का बंधपत्र भरवाया जाता है। प्रविधान के अनुसार रिजल्ट घोषित होने के तीन माह के भीतर शासन की ओर से नियुक्ति-पत्र जारी हो जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो बंधपत्र स्वमेव निरस्त माना जाता है। साथ ही संबंधित डॉक्टर कहीं भी सेवा के लिए स्वतंत्र हो जाता है। साथ ही शासन को उसके मूल दस्तावेज रखने का अधिकार नहीं रह जाता। इसके बावजूद मूल दस्तावेज नहीं लौटाए गए अत: उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई।