शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का अभिनव प्रयास – विविधता में एकता….
डिंडौरी| शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास महाकौशल प्रांत एवं मेकलसुता महाविद्यालय डिंडौरी के संयुक्त तत्वावधान में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (पखवाड़ा) के अवसर पर भारत के विभिन्न भाषाओं पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डॉ हर्ष प्रताप सिंह, प्राचार्य नवोदय विद्यालय धमनगांव, विशिष्ट अतिथि स्वामी रामचरण पुरी, महंत निरंजन देव आश्रम लुटगांव, डॉ प्रताप सिंह चंदेल सेवा निवृत्त प्राध्यापक, रमेश राजपाल व्यवसायी डिंडौरी एवं भारत की अन्य 12 भाषाओं के विद्वान उपस्थित रहे। कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों द्वारा भारत माता एवं सरस्वती माता के प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित कर प्रारंभ किया गया। तत्पश्चात अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर मनाये जा रहे पखवाड़े एवं व्याख्यान माला की प्रस्तावना में संयोजक एवं प्राचार्य मेकलसुता महाविद्यालय डॉ. बी.एल द्विवेदी ने बताया कि मेकलसुता महाविद्यालय डिंडौरी इस कार्यक्रम को एक पखवाड़े के रूप में मना रहा है, जिसके तहत चित्रकला, भाषण, पोस्टर निर्माण, सुलेख लेखन, हिन्दी में हस्ताक्षर अभियान आदि कार्यक्रमों को कराया। इसी क्रम में 18 शैक्षणिक संस्थानों में भी यह कार्यक्रम आयोजित किये गये।
यूनेस्को ने लिया अर्न्राष्ट्रीय मातृभाषा मनाने का निर्णय….
इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है कि विश्व में भाषाई एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा मिले। यूनेस्को द्वारा अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से बांग्लादेश के भाषा आन्दोलन दिवस को अन्तर्राष्ट्रीय स्वीकृति मिली, जो बांग्लादेश में सन 1952 से मनाया जाता रहा है। जब 1947 में भारत से अलग होकर पाकिस्तान बना तो भौगोलिक रुप से दो हिस्सों में बांटा गया पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान, पाकिस्तान में उर्दू को मातृभाषा घोषित किया गया, लेकिन पूर्वी पाकिस्तान में बांगला भाषी अधिक होने के कारण उन्होंने ने बंगला को अपनी मातृभाषा बनाने के लिए संघर्ष शुरू किया। किन्तु पश्चिमी पाकिस्तान के इस्लाम पोषक उन पर उर्दू को मानने के लिए बाद्ध करने लगे। जिसके कारण सन् 1952 में उर्दू मानने वाले एक निःशंस हत्या कर दी गई थी। किन्तु वह लोग अपनी मातृभाषा बंगला को ही स्वीकार किये थे, अंत में इन सारी जटिलताओं को देखते हुए यूनाईटेड नेशन में बात रखी गई जिसके आधार पर 21 फरवरी 1999 को यूनेस्को ने अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा मनाने का निर्णय लिया। यह उत्सव बंगला देश से प्रारंभ हुआ और सन् 2000 से पूरे विश्व में मनाया जा रहा है। यह दिवस विश्व की भाषाओं और संस्कृति का सम्मान हो विश्व भर में भाषाई और सांस्कृतिक विविधता का प्रचार-प्रसार हो और दुनियॉ के मध्य सभी भाषाओं का सम्मान हो।
एक मंच पर दिखी विविधता में एकता….
कार्यक्रम में 12 भाषाओं के वक्ताओं ने अपनी-अपनी भाषाओं में विचार रखे जिसमें संस्कृत (देववाणी) में स्वामी रामशरणपुरी जी ने भारत की संस्कृति और भाषा की एकता को रखा। बांग्ला भाषा में श्रीमति संचिता बनर्जी शिक्षिका नवोदय विद्यालय, मलयालम भाषा में सिस्टर रेशमी प्राचार्य मरद टेरेसा स्कूल, उड़िया भाषा में सुदामा चरण साहू शाखा प्रबंधक स्टेट बैंक, मराठी में जनार्दन बोरकर क्रीड़ा अधिकरी नवोदन विद्यालय, कन्नड में अन्विता कुलकर्णी कृषि वित्त अधिकारी सेन्ट्रल बैंक, असमिया में इमान अली नवोदय विद्यालय, पंजाबी में डॉ. जगदीप प्राध्यापक मॉडल कॉलेज, सिंधी में रमेश राजपाल डिण्डौरी, तेलगू में उत्कर्ष बोरकर नवोदय, हिन्दी में डॉ. पी.एस.चंदेल, गुजराती में डॉ. बी.एल.द्विवेदी आदि ने मातृ भाषा दिवस पर अपने-अपने विचार रखे। भाषा के साथ ही साथ कुछ बोलियों पर भी विचार आये जिनमें मुख्य अतिथि डॉ. हर्षप्रताप सिंह ने हिन्दी एवं बघेली, छत्तीसगढ़ी में योगश वर्मा ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम में आभार प्रदर्शन डॉ. बालस्वरूप द्विवेदी उपप्राचार्य द्वारा बघेली बोली में किया गया। सभी वक्ताओं को भेंट स्वरूप श्रीमद्भागवत गीता की पुस्तक प्रदान की गई। कार्यक्रम का संचालन प्रो. विकास जैन द्वारा किया गया। कार्यक्रम में तकनीकी सहायक डॉ. रामसिंह यादव, प्रो. सुभाष साह धुर्वे, प्रो. स्वर्ण तिवारी, प्रो. निरंजन पटेल की विशेष भूमिका रही। क्रार्यक्रम में अधिक संख्या में प्राध्यापक एवं छात्र छात्रा उपस्थित रहे।