जबलपुर (नवनीत दुबे)। न्यू लाइफ मेडिसिटी अस्पताल में हुआ भीषड़ अग्निकांड जिसमे 12 से 15 निर्दोष आग की लपटों का शिकार बन काल के गाल में समा गए और कई गंभीर रूप से घायल हुए,आखिर इस भयावह दिल दहला देने वाले हादसे के पीछे किसे जिम्मेदार ठहराया जाय, क्या उन मरीजों को जो अपनी बीमारी का इलाज करवाने अस्पताल गए थे ?या फिर अस्पताल प्रबंधन का अर्थात संचालकों को,या फिर संबंधित विभाग के आला अधिकारियों को, या स्वास्थ मंत्रालय को? आखिर इन बेकसूरों की हुई निर्मम मौत का दोषी किसे मन जाय, सर्वविदित है संस्कारधानी में ऐसे निजी अस्पताल सैंकड़ो की तादाद में संचालित हो रहे है रहवासी छेत्रो से लेकर व्यापारिक स्थलों के पास भी निजी अस्पतालों की दुकान फल फूल रही है अब प्रश्न ये उठता है कि आखिर इन निजी अस्पतालों को लाइसेंस ओर मान्यता किस मापदंड के आधार पर जिम्मेदार अधिकारी दे देते है और ये संचालक सारे नियम कानून को दरकिनार कर मरीजों की जान को जोखिम में डालकर मुनाफे के खेल में जमकर लूट खसूट मचाने स्वतंत्र हो जाते है ?हालांकि यह कहना अतिश्योक्ति नंही होगा कि भृष्ट घुंसखोर व्यवस्था और शासकीय भर्राशाही की ही वानगी है कि चंद रुपयों की लालच में जिम्मेदार अधिकारी से लेकर मंत्रालय तक सांठगांठ करके इस तरह के निजी अस्पताल तय मापदंड को मोटी रकम से तोलकर मान्यता ओर लायसेंस ले लेते है और समय समय पर विभाग के अधिकारियों और मंत्री जी के कुछ खास लोगो का भरपूर सेवाभाव से ख्याल भी रखते है शायद इसलिए डुप्लेक्स नुमा मकानों में अस्पताल संचालित करने का दम रखते है? और रही बात आम जनमानस के जीवन की तो कोई बड़ा हादसा हो भी गया तो सिर्फ कुछ दिन हल्ला मचेगा उसके बाद गहरी खामोशी पुनह स्थापित हो जायेगी और सत्ताधीश मृतकों को मुआवजा देकर अपनी ओर से रश्म अदायगी तो कर ही देंगे जिसकी वसूली भी ऐसे ही निजी अस्पताल संचालको से बाद में कर ली जायेगी हा हालांकि दिखावे के लिए पूरा नाटकीय खेल होगा कुछ दिन असपतालो पर प्रशाशन का चाबुक चलेगा,आपराधिक प्रकरण भी दर्ज होगा और निचले क्रम के सरकारी कर्मचारी को निलंबित भी किया जायेगा? पर विडम्बना कहे या शर्मनाक के जिम्मेदार विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों पर कोई सख्त कानूनी कार्यवाही नही होगी? जो एक उदाहरण बन सके भृष्ट ओर घुंसखोर व्यवस्था के लिए।