जबलपुर, डेस्क। मप्र उच्च न्यायालय ने शासकीय कर्मी को उसके खिलाफ अभियोजन स्वीकृति की जानकारी आरटीआई के तहत जानकारी नहीं देने पर चीफ इनफॉरमेशन कमिश्नर पर दो हजार रुपए की कॉस्ट लगाई है। जस्टिस शील नागू व जस्टिस अरुण कुमार शर्मा ने कहा कि आवेदक को आरटीआई का आवेदन करने, फर्स्ट अपील और सेकेण्ड अपील पर भी जानकारी नहीं मिली। त्रस्त होकर आवेदक को मजबूर होकर न्यायालय का दरवाजा खटखटना पड़ा। न्यायालय ने कहा कि लोक सूचना अधिकारियों ने इस बात की जांच नहीं की कि प्रकरण में जांच पूरी हो गई है और न्यायालय में चालान भी पेश हो चुका है। इसके बाद प्रथम व द्वितीय अपीलीय अधिकारी ने भी इस तथ्य को जांचे बिना अपीलें खारिज कर दीं, इसलिए उच्चतम अधिकारी को इसका हर्जाना भुगतना होगा। न्यायालय ने सीआईसी को 60 दिन के भीतर कॉस्ट की राशि आवेदक को अदा करने के निर्देश दिए और ऐसा नहीं होने पर याचिका स्वत: जीवित हो जाएगी।
स्टेट जीएसटी जबलपुर में पदस्थ रहे कर्मचारी प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने याचिका दायर कर बताया कि उस पर भ्रष्टाचार का आरोप है। वर्तमान में याचिकाकर्ता निलंबन अवधि में है और नरिसंहपुर में पदस्थ है। भोपाल की विशेष पुलिस स्थापना लोकायुक्त भोपाल ने 2018 में याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रकरण पंजीबद्ध किया था। श्रीवास्तव ने आरटीआई के तहत अभियोजन स्वीकृति की कॉपी मांगी थी। अधिकारी ने यह दलील दी कि प्रकरण न्यायालय में लंबित है, इसलिए कॉपी नहीं दी जा सकती। वहीं शासन की ओर से बताया गया कि 20 जून 2020 में ही उक्त प्रकरण में चार्जशीट पेश हो चुकी है, और सूचना आयोग ने 28 जुलाई को जानकारी देने से इनकार किया है।