साईडलुक, जबलपुर। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने दिव्यांग को नियम विरुद्ध तरीके से बीपीएल कार्ड जारी होने के रवैये को आड़े हाथों लिया है। न्यायमूर्ति जीएस अहलूवालिया की एकलपीठ ने न केवल बीपीएल कार्ड बल्कि उसके आधार पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता पद पर हुई नियुक्ति भी निरस्त करने का सख्त आदेश पारित कर दिया।
याचिाकाकर्ता टीकमगढ़ निवासी रोशनी राजपूत की ओर से पक्ष रखा गया। दलील दी गई कि याचिकाकर्ता ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ता पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन किया था। उसे 45.9 अंक प्राप्त हुए थे और वरियता सूची में उसका तीसरा स्थान था। प्रथम स्थान पर अनावेदक माया राजपूत थी, जिसे 48 अंक प्राप्त हुए थे। प्राप्त अंक में 10 अंक बीपीएल कार्ड के मिले थे।
फाइनल लिस्ट जारी करते समय बीपीएल कार्ड निरस्त होने के कारण अनावेदक के 10 अंक कम कर दिए गए थे। दूसरे स्थान की प्रतिभागी का चयन किसी अन्य आंगनबाडी केंद्र में हो गया था। जिसके कारण उसे नियुक्ति प्रदान की गई थी, जिसे चुनौती देते हुए अनावेदिका ने कलेक्टर के समक्ष आवेदन किया था।
आवेदन निरस्त होने के बाद संभागायुक्त के समक्ष अपील दायर की गई थी। संभागायुक्त ने अपील को इस तर्क के साथ स्वीकार कर लिया कि आवेदन करते समय बीपीएल कार्ड जीवित था। संभागायुक्त के आदेश को चुनौती देते हुए उक्त याचिका दायर की गई।
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने सुनवाई के दौरान पाया कि अनावेदक महिला के पिता के नाम बीपीएल कार्ड जारी हुआ है। उसके पिता के पास साढ़े छह हेक्टेयर से अधिक जमीन है और वह ट्रैक्टर का मालिक है। बीपीएल कार्ड के आधार पर अनावेदिका को नियुक्ति प्रदान कर दी गई है।
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने जारी करने की तिथि से बीपीएल कार्ड निरस्त करते हुए अपने आदेश में कहा कि आवेदक के पिता दिव्यांग होने के कारण बीपीएल की पात्रता नहीं रखते। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की नियुक्ति निरस्त करने का आदेश जारी किया जाता है।