साईडलुक, जबलपुर। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने मतदान अनिवार्य किए जाने की मांग संबंधी जनहित याचिका निरस्त कर दी। मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ और न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की युगलपीठ ने अपने आदेश में साफ किया कि मतदान करना है या नहीं, यह नागरिकों की स्वतंत्रता का विषय है। इसके अलावा जनहित याचिकाकर्ता ने अपने अभ्यावेदन का जवाब आने की प्रतीक्षा किए बिना जल्दबाजी में उच्च न्यायालय आने की गलती की है। इस वजह से अपरिपक्व पाते हुए जनहित याचिका निरस्त की जाती है। हालांकि जनहित याचिकाकर्ता अभ्यावेदन के जरिये अपनी मांग बुलंद कर सकता है।
जनहित याचिकाकर्ता जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के प्रोफेसर डॉ. मुमताज अहमद खान की ओर से अधिवक्ता अजय रायजादा, अंजना श्रीवास्तव व अभिमन्यु सिंह ने दलील दी कि जनहित यचिका में भारत के निर्वाचन आयोग नई दिल्ली, मुख्य निर्वाचन अधिकारी भाोपाल व जिला निर्वाचन अधिकारी जबलपुर को पक्षकार बनाया गया है।
दरअसल, प्रत्येक नागरिक जिसकी आयु 18 वर्ष से अधिक है, वह मतदान का अधिकारी है। राष्ट्रीय, राज्य स्तरीय, जिला स्तरीय व स्थानीय चुनावों में मतदान अनिवार्य किया जाना चाहिए। केंद्रीय, राज्य, जिला व स्थानीय निकायों में कार्यरत कर्मियों को मतदान के दिन वैतनिक अवकाश दिया जाता है। उस दिन बिना कार्य के भी वेतन मिलता है। इसके बावजूद यदि वे मतदान प्रक्रिया में सहभागी नहीं होते तो नियोक्ता द्वारा वैतनिक अवकाश दिए जाने के आधार पर दांडिक कार्रवाई होनी चाहिए। विश्व के कई देशों में मतदान अनिवार्य किया गया है, तो भारत में क्यों नहीं। सवाल उठता है कि जब मतदान के दिन बिना कार्य के करोड़ों रुपये वेतन दिया जाता है, तो फिर मतदान अनिवार्यत: करने की व्यवस्था क्याें नहीं दी जा सकती।