तरुण के जनाधार पर राकेश का जनसम्पर्क
जबलपुर (नवनीत दुबे)। वैसे तो समूचे मध्यप्रदेश में इस बार का विधानसभा चुनाव बड़ा रोचक दृष्टिगत हो रहा है, सर्वविदित है कि 15 महीने की कमलनाथ सरकार को ज्योतिरादित्य सिंधिया की सहायता से सत्ता सिंहासन से अलग कर शिवराज सिंह चौहान पुनः सत्ता के सिंहासन पर बैठ पाय थे, इस बात का उल्लेख इसलिए आवश्यक है क्योकि सिंधिया खेमे केकुछ लोगो की टिकिट भी इस बार भाजपा ने काटी है और जमीनी भाजपाई को मैदान में उतारा है ठीक इसी तरह प्रदेश भजपा में टिकिट वितरण को लेकर फूट, आक्रोश, असंतोष का माहौल भीतर ही भीतर सुलग रहा है भले पार्टी आलाकमान डेमेज कंट्रोल की बात कर रहे है पर सूत्रों की माने तो भाजपाइयों का दबे सुर में यही कहना है कि जमीनी कार्यकर्ता की उपेक्षा कर एक बार फिर पार्टी दिग्गजों ने प्रत्याशी थोप दिया है? खैर मुद्दे की बात पर आते है इस दफा जबलपुर की चार विधानसभा सीटों में सबसे ज्यादा रोचक मुकाबला पश्चिम ओर उत्तर मध्य में दिख रहा है, उत्तर की चर्चा बाद में करेंगे पहले पश्चिम विधानसभा में बन रहे समीकरण की बात करते है पूर्व वित्त मंत्री और दो बार के विधायक तरुण भनोट को टक्कर देने भाजपा आलाकमान ने इस बार चार बार के सांसद राकेश सिंह को मैदान में उतारा है हालांकि पार्टी आलाकमान ने बहुत सोच समझ कर ही ये निर्णय लिया होगा, किंतु यदि वस्तुस्थिति पर दृष्टि डाली जाए तो चार बार के विजेता सांसद श्री सिंह का केंद्र की राजनीति से कद घटाकर प्रदेश की राजनीति में लाना कोई न कोई मजबूरी होगी आलाकमान की तो वही कयास ये भी लगाया जा रहा है कि पश्चिम विधानसभा से कोई शशक्त दावेदार नही था जो तरुण भनोट को टक्कर दे सके इसलिए राकेश सिंह को प्रतिद्वन्दी बनाया है, वैसे पश्चिम विधानसभा से कई दावेदार खुद को शशक्त बता रहे थे तरुण से मुकाबले में संभवतः उन सारे दावेदारों के नाम सर्वे में कमजोर ही साबित हुए होंगे जो सांसद जी को मैदान में उतारना पड़ा? खैर अब जब भाजपा की प्रतिष्ठा का विषय बन चुका पश्चिम विधानसभा जीत की रणनीति बनाने नितदिन नए प्रयास कर रही है तो वहीं कॉंग्रेस के तरुण पूर्ण बेफिक्री से अपने कार्यकाल में किये गए विकास कार्य और जन हित के दम पर पूर्ण आस्वस्त है, तो वहीं वर्तमान विधायक प्रत्याशी राकेश सिंह भी एड़ी चोटी का पसीना बहा रहे है मतदाताओं को रिझाने, ऐसे परिप्रेशय में अगर सूत्रों की माने तो पश्चिम से सिंह साहब की दावेदारी से अंतर्कलह मच गई है जो उजागर नही की जा रही है, गुटबाजी भितरघात की राजनीतिक तलवार को तेज धार लगाई जा रही है? हालांकि ऐसे में ये कहना अतिश्योक्ति नही होगा कि कर्मठ ओर समर्पित भाजपाई जो स्थानीय पदाधिकारी भी है वो भीतर ही भीतर खीझ से भरे है? “सियासत है भैया यहाँ सब जायज है” तो वहीं अगर पश्चिम विधानसभा के गली, मोहल्लों, चौराहों, पान तपरों, होटलों में एकत्रित जनमानस (मतदाता) ये तक चर्चा चटकारे लेकर कर रहे है कि मोदी जी ने जितने मंत्री और सांसदों को विधायकी के मैदान में उतारा है, उनमें कुछ को छोड़कर बाकी अन्य की स्थानीय स्थिति आंकने के लिए ये किया है क्योकि मोदी के नाम से अधिकांश जीत कर सांसद बनते जा रहे थे? “खेैर जितने मुह उतनी बातें ओर जनता तो जनार्दन है जो मन में आये बोल सकती है अंततः पश्चिम विधानसभा जो कॉंग्रेस का गढ़ बन चुकी है ऐसे में योग्य उम्मीदवार के अभाव में सांसद राकेश सिंह को तरुण के मुकाबले प्रतिद्वंदी बनाने से मुकाबला रोचक और कांटे की टक्कर का हो गया है, अब देखना ये रोचक होगा कि पूरी शिद्दत ओर आस्था से चुनावी भगवान स्वरूप मतदाता के सामने हाथ फैलाकर झोली खोल कर वोट का आशीष मांगने वाले किस प्रत्याशी को पश्चिम की जनता विजयो भवः का आशीर्वाद देती है।