साईडलुक, नवनीत दुबे। हाल ही में कुछ ऐसे मामले सामने आ रहे है, जिनमे शासकीय विभाग में द्वितीय व तृतीय श्रेणी के कर्मचारी लोकायुक्त तथा ईओडब्ल्यू की छापेमारी के दौरान धनकुबेर के रूप में उभरकर सामने आये है, इसमे कोई आश्चर्य की बात नही है। ‘‘सबका साथ साहब का विकास’’ की एक इबारत ऐसे ही तो प्रतिष्ठा और धनसंपन्न होने का बखान करती है। वैसे भी सर्वविदित है कि शासकीय विभागों में अधिकांशतः चतुर्थ श्रेणी से लेकर उच्च श्रेणी के कर्मचारी-अधिकारी दिन दूनी रात चैगुनी तरक्की लक्ष्मीजी की कृपा से ही कर रहे है। वो बात अलग है, लक्ष्मीजी के आने का रास्ता ईमानदारी की फुलवारी से है, या फिर बेईमानी के बगीचे से कुबेर महाराज की कृपादृष्टि बनी है।
खैर मुद्दे की बात पर आते है, जगजाहिर है कि शासकीय सेवा में ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ कर्मचारी से लेकर उच्च अधिकारी की संख्या बहुत कम है, जो अपने उसूलों को सर्वोपरि रखकर चलते है, लेकिन धनलोभी, रिस्वतखोरो की संख्या अधिक है। तभी तो चतुर्थ श्रेणी कर्मी भी चैपहिया ओर सर्वसुख का भरपूर आनंद लेते हुए सपरिवार जीवन व्यतीत कर रहा है, तो बड़े अधिकारियों की तो बात ही निराली होगी?
मुद्दे की बात पर आते है, कुछ ऐसे शासकीय विभाग जहा मलाई ओर रेवड़ी का भंडार होता है। जिनमे तहसीली, जिला पंचायत, नगर पालिका निगम, पुलिस विभाग, खाद्य विभाग, आबकारी, ड्रग विभाग, वन विभाग, लोक निर्माण विभाग इत्यादि है। और ये कहना अतिश्योक्ति नही होगा कि गुप्त तरीके से अगर इन विभागों में कार्यरत कर्मियों अधिकारियों की संपत्ति की जांच की जाय तो जो खुलासा होगा।
वो शासकीय भर्राशाही, भ्रस्टाचार की कलाई खोल कर रख देगा। हालांकि इस बात को भी नजर अंदाज नही किया जा सकता कि संबंधित विभागों के अधिकारी से लेकर चपरासी तक एक दूसरे को साथ लेकर चलते है, तो वही सफेद पोशों के हिस्से का भी पूरी ईमानदारी से ध्यान रखा जाता है। अब वो बात अलग है, भूल चूक या आपसी द्वेष की परिणीति स्वरूप कोई शासकीय अधिकारी या कर्मी सपड में आ जाय?