साईडलुक, सत्यजीत यादव। देशभर में बैंकिंग सेक्टर की वसूली प्रक्रिया अब सिर्फ कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक भय और उत्पीड़न का पर्याय बन चुकी है। हालिया HDFC बैंक मामले ने जहां एक जवान को अपमानित करने वाली महिला की आवाज से देश को झकझोर दिया, वहीं यह घटना कई हजारों पीड़ितों की तकलीफों का सिरा भर है।
एक वायरल ऑडियो क्लिप ने हाल ही में बैंक वसूली एजेंटों और बैंककर्मी की वृहद् आलोचना को जन्म दिया है। इस ऑडियो में एक महिला, जिसे सोशल मीडिया पर अनुराधा वर्मा कहा जा रहा है, कथित रूप से HDFC बैंक की कर्मचारी बताई जा रही है, एक भारतीय सेना के जवान को फोन पर अपमान और धमकी दे रही है। मामला लोन रिकवरी से जुड़ा बताया गया है, जिसमें आवाज़ में न सिर्फ बैंक नियमों की अवहेलना नजर आ रही है, बल्कि सेना, शहीदों और जवानों के प्रति अनुचित और घिनौने बयानों का आरोप है।
सरकारी नीतियों की विफलता, बढ़ती बेरोज़गारी और महंगाई के कारण बैंक डिफॉल्टरों की संख्या में तेज़ी से इज़ाफा हुआ है। जिन लोगों ने कर्ज लिया था, उनकी आज आय का कोई स्थायी स्रोत नहीं बचा। नौकरी गई है, व्यवसाय ठप पड़ा है। ऐसे में वसूली एजेंसियों की बर्बरता उन्हें कर्ज़दार नहीं, बल्कि अपराधी जैसा बना रही है।
रिकवरी एजेंसियों का अपराधी चेहरा
इन दिनों बैंक प्राइवेट रिकवरी एजेंसियों को हायर कर रही हैं, जो न केवल लोन धारकों को अपमानित करती हैं, बल्कि उनकी फोनबुक से डेटा चुरा कर उनके रिश्तेदारों व परिचितों को धमकी भरे कॉल कर मानसिक प्रताड़ना देती हैं, जो स्पष्ट रूप से साइबर क्राइम की श्रेणी में आता है, लेकिन RBI और सरकार की चुप्पी से ऐसा प्रतीत होता है जैसे इन्हें इन अमानवीय कृत्यों का मूक समर्थन प्राप्त हो, जिसके चलते कई लोग डिप्रेशन, आत्महत्या और सामाजिक बहिष्कार जैसे गंभीर परिणाम भुगतने को मजबूर हैं।
RBI की गाइडलाइन का उल्लंघन
हालाँकि RBI ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि ग्राहकों से सुबह 7 बजे से पहले और रात 7 बजे के बाद संपर्क नहीं किया जा सकता, उनकी निजता का उल्लंघन नहीं होना चाहिए, एजेंट सम्मानजनक भाषा व व्यवहार अपनाएं और ग्राहक की जानकारी किसी तीसरे पक्ष से साझा करना अपराध है, फिर भी इन नियमों का उल्लंघन करने वालों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है।
सरकार का क्या है रोल ?
सरकार का दायित्व जहाँ जनता के जख्मों पर मरहम लगाना होना चाहिए, वहीं ज़मीनी हकीकत यह है कि न कोई हेल्पलाइन है, न कोई जवाबदेही और न ही किसी तरह की कड़ी कार्रवाई, बल्कि बैंक और उनकी एजेंसियों को खुली छूट दी जा रही है, जो सीधे-सीधे आम लोगों के अधिकारों का हनन है।
जनता और नेताओं की प्रतिक्रिया
सोशल मीडिया उपयोगकर्ता और आम नागरिक इस घटना को “देशभक्ति और सम्मान पर ठेस” बताते हुए बैंक से सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, वहीं कुछ राजनीतिक दलों ने इसे गंभीरता से लेते हुए बैंक की जवाबदेही तय करने और बैंककर्मियों व वसूली एजेंटों की प्रशिक्षण व्यवस्था की तत्काल समीक्षा की मांग उठाई है।
पीड़ितों का कहना है:
“हमने कर्ज़ लिया, लेकिन जानबूझकर नहीं चुकाया ऐसा नहीं था। हालात खराब हैं, सरकार को समझना चाहिए। लेकिन हमें अपमानित किया जा रहा है जैसे हम अपराधी हों।”
RBI के नियमन की मजबूती पर खड़े सवाल
यह घटना सिर्फ एक जवान के अपमान की नहीं है। यह सभी ग्राहकों की गरिमा, बैंकिंग वसूली प्रक्रिया की पारदर्शिता और RBI के नियमन की मजबूती पर सवाल खड़े करती है। यदि बैंक, एजेंट और नियामक सभी मिलकर उचित कदम नहीं उठाते, तो इस तरह की घटनाएँ फिर से हो सकती हैं जिससे सार्वजनिक विश्वास को बड़ा धक्का लगेगा।
समाधान क्या है ?
RBI को सभी बैंकों और एजेंसियों की वसूली गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखते हुए सख्त कार्रवाई करनी चाहिए, साथ ही ग्राहकों को मानसिक उत्पीड़न से बचाने के लिए कानूनी सहायता और हेल्पलाइन तंत्र बनाना आवश्यक है, वहीं ऐसे एजेंट्स पर साइबर अपराध और आईटी एक्ट के तहत FIR दर्ज की जानी चाहिए और सरकार को प्रेस, मीडिया, RTI व नागरिक संगठनों के माध्यम से इनकी जवाबदेही तय करनी चाहिए।
क्या करें जब रिकवरी एजेंट परेशान करे:
— सबूत इकट्ठा करें: एजेंट के साथ अपनी सभी बातचीत का रिकॉर्ड रखें, जैसे फोन कॉल रिकॉर्ड करना और मैसेज को सुरक्षित रखना।
— बैंक से शिकायत करें: अपने बैंक के शिकायत निवारण तंत्र के माध्यम से औपचारिक शिकायत दर्ज करें।
— पुलिस को रिपोर्ट करें: यदि एजेंट आपको धमकी देता है, हमला करता है, या आपकी निजता का उल्लंघन करता है, तो तुरंत पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराएं।
— आरबीआई लोकपाल से संपर्क करें: यदि बैंक 30 दिनों के भीतर आपकी शिकायत का समाधान नहीं करता है, तो आप RBI लोकपाल के पास जा सकते हैं।
— बैंक और एनबीएफसी के दिशानिर्देशों का पालन करवाएं: एजेंट केवल सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे के बीच ही संपर्क कर सकते हैं. इसके बाहर की किसी भी मुलाकात या संपर्क को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं।
— सिविल कोर्ट का सहारा लें: यदि उपरोक्त चरणों से राहत नहीं मिलती है, तो आप अदालत में जाकर कानूनी सहारा ले सकते हैं।