जबलपुर, डेस्क। मप्र उच्च न्यायालय की नियुक्तियों में आरक्षण का पालन न किए जाने के रवैये को चुनौती देने वाली जनहित याचिका की सुनवाई दूसरी युगलपीठ में होगी। उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी कि भविष्य के जिस मामले में अधिवक्ता विनायक शाह का नाम होगा, वह मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली युगलपीठ के समक्ष नहीं सुना जाएगा।
मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमथ व न्यायमूर्ति पुरुषेंद्र कुमार कौरव की युगलपीठ के समक्ष मामला सुनवाई के लिए लगा। इस दौरान जनहित याचिकाकर्ता एडवोकेट यूनियन फार डेमोक्रेसी एण्ड सोशल जस्टिस की ओर से अधिवक्ता विनायक प्रसाद शाह, रामेश्वर सिंह ठाकुर, उदय कुमार, ओपी पटेल व गोपाल श्रीवास ने पक्ष रखा। दलील दी गई कि मप्र उच्च न्यायालय द्वारा की जा रही 1255 नियुक्तियों में कम्युनल आरक्षण लागू किया जा रहा है, जिसकी वैधानिकता कठघरे में रखे जाने योग्य है। संवैधानिक प्रविधान की रोशनी में ऐसा नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की बेंच ने इंद्रा साहनी के मामले में साफ किया था कि, आरक्षित वर्ग के मेरिटोरियस छात्रों को अनारक्षित वर्ग में चयन का मौलिक अधिकार है। इसके बावजूद उच्च न्यायालय ने इस नियम को दरकिनार कर मेरिटोरियस छात्रों को उनके ही वर्ग में चयनित किया है। इस वजह से ओबीसी का कट आफ 82 व सामान्य अनारक्षित वर्ग का कट आफ 77 अंक है।

