जबलपुर, नवनीत दुबे। बीते दिनों अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का वृहद आयोजन संस्कारधानी के गैरिसन ग्राउंड में हुआ था, जिसमें उपराष्ट्रपति श्री जगदीश धनगर अपनी पत्नी के साथ पधारे थे साथ ही राज्यपाल वह प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान सहित केंद्रीय राज्य मंत्री पहलाद पटेल सांसद राकेश सिंह वाह अन्य प्रशासनिक अधिकारी और भाजपाइयों की भारी भीड़ रही, आप सोच रहे होंगे कि राज्यसभा सांसद सुमित्रा बाल्मीकि के नाम का उल्लेख क्यों नहीं किया गया, तो स्पष्ट हो शंशयात्मक स्थिति यही है कि इतने अहम पद पर स्थापित होने के बाद भी श्रीमती बाल्मीकि की उपेक्षा प्रशासनिक अधिकारी व स्थानीय दिक्कत भाजपाई क्यों कर रहे हैं? राज्यसभा सांसद के साथ ऐसा भेदभाव आखिर क्यों हो रहा है और आखिर वह कौन है जो सुमित्रा जी के बढ़ते राजनीतिक कद को हजम नहीं कर पा रहा है? यही भाव दर्शाने कलमकार ने प्रारंभ में श्रीमती बाल्मीकि के नाम का उल्लेख नहीं किया था, चर्चा इस बात की हो रही है कि वीआईपी प्रोटोकॉल के अंतर्गत बैठक व्यवस्था की जिम्मेदारी कलेक्टर व अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की थी लेकिन राज्यसभा सांसद जैसे महत्वपूर्ण पद आसीन की बैठक व्यवस्था को अनदेखा किया गया, तब श्रीमती बाल्मीकि एक आम भाजपा की तरफ पीछे लगी कुर्सी में बैठने विवश हुई सूत्रों की माने तो जबसे सुमित्रा बाल्मीकि राज्यसभा सदस्य बनी है तभी से कुछ स्थानीय दिग्गजों जिनके लिए ‘‘दिल्ली दूर नहीं’’ वह एक जमीनी कार्यकर्ता को अपने समकक्ष खड़ा देखकर मन ही मन गठित हैं कहा तो यह भी जा रहा है कि प्रशासनिक विभागों व पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारी तक सांसद महोदय आपको कोई खास तवज्जो नहीं देते हैं? सर्वविदित है कि सुमित्रा बाल्मीकि के साथ दुर्गा मां की नीति कोई नई बात नहीं है जब वह निगम अध्यक्ष थी तब भी किसी ना किसी तरह से उनके सम्मान को आहत किया जाता रहा है, इसके बाद जब राज्यसभा सदस्य बनी तो सर्किट हाउस में कमरे से उनका सामान बाहर रखवा दिया गया तो वही निकाय चुनाव में भी उनकी सहमति को नजरअंदाज किया गया, और अब उपराष्ट्रपति के संस्कारधानी आगमन पर आयोजित कार्यक्रमों में सुमित्रा बाल्मीकि की अनदेखी की गई अब ऐसे में यह बात विचारणीय जिज्ञासा युक्त है कि कलेक्टर साहब से इतनी बड़ी चूक अनजाने में हुई या फिर सियासत के खेल अजब गजब है?