जबलपुर (नबनीत दुबे)। बीते कुछ समय से संस्कारधानी के अभिभावक सुकून के साथ राहत की सांस ले रहे है और जिला कलेक्टर दीपक सक्सेना के प्रति कृतज्ञता और आभार का भाव प्रदर्शित कर भूरि भूरि प्रशंसा करते नहीं थक रहे, आखिर ऐसा हो भी क्यो ना कलेक्टर साहब ने पीड़ित अभिभावकों के दर्द पर मरहम लगा कर असहनीय वेदना से राहत जो दी है, सर्वविदित है कि श्री सक्सेना ने जो शिक्षा माफिया पर नकेल कस कर जो साहसिक कार्यप्रणाली का परिचय दिया है, जिससे शिक्षा जगत के लुटेरों में हाहाकार मचा है और कुछ तो खाखीधारियों की जगजाहिर आवभगत का अश्रु और शारीरिक कंपन के साथ लुत्फ उठा रहे है? ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि संभवतः पहली बार किसी कलेक्टर ने ऐसा साहसिक कदम उठाकर शिक्षा के नाम पर लूट की दुकान चलाने वाले निजी स्कूल संचालकों पर प्रसाशन का चाबुक चलाकर इनकी मनमानी, गर्रापन, की अकड़ निकाल कर रख दी है, हालांकि अब परिणीति स्वरूप इन स्कूल संचालकों के सियासती आका आग बबूला हो अपने अपने स्तर पर श्री सक्सेना के विरुद्ध नीति रणनीति तैयार कर इनका तबादला करवाने हर संभव जतन कर रहे है, तो वहीं ऐसी चर्चा भी है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव की जनहितकारी कार्यप्रणाली ओर शिक्षा के नाम पर मची खुली लूट रोकने की मंशा से ही जिला कलेक्टरों को आदेशित कर निष्पक्ष ओर पारदर्शी कार्यवाही करने आदेशित किया गया है, लेकिन ये कहना भी गलत नहीं होगा कि सियासत के अखाड़े में कौंन से खलीफा किस खलीफे का उस्ताद निकले, ये कयास सहज लगा पाना मुश्किल है और सफेदपोश उस्ताद अपनी वरिष्ठता के दम पर अधीनस्थ सफेदपोश खलीफा की कार्यप्रणाली पर हस्तक्षेप कर अपने चाटुकारों की मनमानी ओर लूट का वर्चस्व पुनः स्थापित करवा दे? अंततः ये लेख आवश्यक है कि कलेक्टर श्री सक्सेना द्वारा जिन—जिन निजी स्कूलों के संचालकों पर कार्यवाही की गई वह साहसिक ओर सराहनीय कदम है, किंतु अभी भी कुछ निजी स्कूल संचालक है जो सत्ता के वटवृक्ष की छांव में होने के कारण प्रशासनिक कार्यवाही से बचे हुए है, अब देखना ये है कि पारदर्शी कार्यप्रणाली के चलतें इन निजी स्कूल संचालकों पर प्रसाशन का चाबुक चलता है या नहीं? साथ ही लंबे अरसे बाद जबलपुर में पदासीन हुए कलेक्टर दीपक सक्सेना की कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी, जनहितकारी कार्यप्रणाली पर सियासती धुरंधरों की कुदृष्टि क्या प्रभाव डालती है?