जबलपुर नवनीत दुबे– महापौर जगत बहादुर अन्नू संस्कारधानी को सुव्यवस्थित, सौंदर्य वान, बनाने के मन में है और शायद इसी मंशा से प्रमुख बाजारों में कब्जा जमाए अतिक्रमण कारी अर्थात सड़कों पर बैठकर व्यापार करने वाले, साथ ही बड़े-बड़े दुकान मालिक जो अपनी दुकान का लाव लश्कर सड़क तक फैला कर रखते हैं, प्रमुख बाजारों के व्यापारियों द्वारा फैलाए गए मकड़जाल से संस्कारधानी को मुक्त कराने का जो साहसिक कदम अनु सिंह ने उठाया है वह प्रशंसनीय है लेकिन फिर वही प्रश्नवाचक? किसकी शह पर व्यापारी धड़ल्ले से अतिक्रमण किए हुए हैं इस बात से हर कोई भली-भांति अवगत है, सर्वविदित है कि प्रमुख बाजारों में व्यापार का संचालन कर रहे बड़े से छोटे व्यापारी तक राजनीतिक आकाओं के कृपा पात्र हैं, वह बात अलग है कि कुछ के सरपरस्त भाजपा ई, आका है तो कुछ के सरपरस्त कांग्रेसी आका, अब ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि अन्नू सिंह किस रणनीति के तहत अपनी मंशा को पूर्ण करेंगे हालांकि यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि रियासती वर्चस्व की लड़ाई का ही परिणाम है कि जबलपुर आज भी कई मामलों में पिछड़ा हुआ ही है और बदहाली-कुरूपता का दंश झेल रहा है, मुद्दे की बात यह है कि संस्कारधानी के माननीय शहर विकास की बड़ी बड़ी बातें तो करते हैं लेकिन वास्तविकता शायद यही है कि इच्छाशक्ति का अभाव है? कांग्रेस के महापौर बड़ी-बड़ी योजनाओं की घोषणा तो कर रहे हैं जिस पर करोड़ों की राशि व्यय की जाएगी लेकिन सियासत ई दाव पेच में माहिर पक्ष विपक्ष निजी लाभ की प्राप्ति के बिना इन योजनाओं को कागजों तक ही बांधकर रखने में माहिर है? साथ ही यह कहना भी अनुचित नहीं होगा कि महापौर जिस जोश से संस्कारधानी के सौंदर्य, स्वस्थ स्वरूप व विकास की भावना को लेकर मैदानी स्तर पर जुट गए हैं यही कि पार्टी के वरिष्ठ दिग्गज चुनावी लाभ की चाह में जगत बहादुर के मंसूबों पर पानी ना फिर दे और बची खुची कसर पूरी करने विपक्ष तो बैठा ही है? अंततः इन सबके बीच सबसे अहम पहलू नगर पालिका निगम के कर्तव्यनिष्ठ ईमानदार अधिकारी जो इतने सालों से शहर के हर व्यवस्था को दुरुस्त रखे हुए हैं वह बात अलग है की जमीनी स्तर पर हालात शर्मनाक हैं, तो वही अतिक्रमणकारियों से बाजार विभाग के अधिकारी से कर्मचारी तक मित्रवत संबंध निभाने का काम कर रहे हैं और गुप्त दान को सहर्ष स्वीकार कर सबका साथ सबका विकास का नारा बुलंद कर रहे हैं?